यह कथा दो युवाओं की है, जो एक ओर समाज के कठोर बंधनों में उलझे हुए हैं, जबकि दूसरी ओर उनके मन में स्वतंत्रता की लालसा और सपनों की सुगंध उन्हें उन बंधनों को तोड़ने की प्रेरणा देती है। ये युवा, जो मिडिल क्लास परिवार से संबंधित हैं, अपने सपनों और आकांक्षाओं के साथ-साथ परिवार की उच्च अपेक्षाओं के बोझ तले दबे हैं। इस कहानी में उनके जीवन में आने वाली चुनौतियों और संघर्षों की झलक दिखाई जाती है, जिन्हें पार करते हुए वे अपने छोटे-बड़े ख्वाबों को साकार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह दरअसल एक यात्रा है, जिसमें विवशता और साहस का अनोखा समागम निर्मित होता है। कहानी का अंत एक ऐसा मोड़ लेता है, जहां संतोष और असंतोष के मध्य एक रेखा धुंधली पड़ जाती है, जिससे पाठक को गहराई से सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। यह पुस्तक एक बेहद संवेदनशील विषय की ओर पाठकों का ध्यान खींचेगी और उन्हें उनके जीवन के छोटे-छोटे सपनों की संभावना पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करेगी।