घाँस-फूँस का बंगला (न कुटी ना किला), ये न कहानी है ना कविता । यहाँ छोटी छोटी खुशियाँ तो है ही साथ में झीनी झीनी मुस्कान है, पलकों पर भींगीं खुशबू है तो कहीं आँखों का श्रृंगार है, मन की उमंग है तो कहीं ख्वाबों की ऊंची उड़ान है...हाँ मेरे दोस्तो ये मेरे शब्दों का मकान है। इस किताब को न कहानी में बांटा जा सकता है ना ही कविताओं में पिरोया जा सकता है बस सिर्फ जिया जा सकता है।