यह कहानी दो ऐसे युवाओं की कहानी है, जो एक तरफ तो सामाजिक बंधनों से बंधे हैं, वहीं दूसरी ओर अपने उन्मुक्त विचारों के चलते परिंदों की तरह समस्त सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर अपने छोटे-बड़े सपने पूरे करने के लिए स्वछंद आसमान में उड़ना चाहते हैं। मध्य वर्गीय परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों युवाओं की इस विवशता और उसके लिये उन दोनों द्वारा परिस्थितियों के साथ किया गया बेहतरीन समन्वय, कहानी को एक दूसरे ही मुहाने पर ले जाकर समाप्त करता है, जहां शायद तृप्ति और अतृप्ति के बीच भेद कर पाना असंभव जान पड़ता है। पुस्तक का कथानक बेहद ही मार्मिक एवं संवेदनशील विषय की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करेगा।