आज साधक गण तुरीयावस्था (चतुर्थ) से तुरीयातीत (पञ्चम) अवस्था के बीच अटकने, भटकने को विवश हैं, कारण है यथार्थ पथप्रदर्शक, गुरु वा अनुभव-आधारित लेखन-प्रकाशन का सहज उपलब्ध न होना । यह पुस्तक मेरे २५ वर्षों के आगमोक्त प्रयोगों का सारगर्भित संकलन है । पुस्तक के "इच्छति-जानति-यतते" में मैंने कौलाचार के सैद्धान्तिक विचारान्दोलन का वस्तुपरक समायोजन के साथ ही इसके गर्भ-मण्डल में "पुरुषार्थ चतुष्टय" संधान के अपने अनुभवजन्य नव-प्रयोगों का सत्यार्थ प्रकाशन किया है । सकाम साधना हेतु यह लेखन सर्वसुलभ, सरल तथा अनुभव-सिद्ध प्रयोगशाला है जो तन्त्र साधकों के लिए 'संदर्भित कुंजिका' सदृश है । अतएव, विषय-सूची: "कालिकोपासनाकल्पद्रुमानुक्रमणिका" - "ज्ञान-योग", "भक्ति-योग", "मंत्र-योग" तथा "पुरश्चरण-योग" - चारों खण्ड मिलकर इसे दुर्लभ वैदिक - वैज्ञानिक नवाचार बनाते हैं, अस्तु, पुस्तक "श्यामा - कल्पतरु" तथा संग्रहणीय है ।