भारत वर्ष में औषधीय पौधों की खेती का इतिहास काफी पुराना है। जन सामान्य के रोगों का उपचार जड़ी -बूटियों से तैयार औषधियों से ही होता था। क्योंकि प्राचीन काल में एैलोपैथिक दवाइयों का प्रचलन नहीं था । आयुर्वेद, यूनानी, तिब्बी, होम्योपैथी व एैलोपैथिक चिकित्सा में जड़ी -बूटियों तथा औषिधीय पौधो का उपयोग होता है, हमारे प्राचीन ग्रन्थों - रामायण , महाभारत , वेद , पुराणों व उपनिषदों में भी औषधीय पौधों का वर्णन है। आज संसार में अकेले एैलोपैथी दवाइयों में एक सौ से भी अधिक औषधीय पौधों का प्रयोग हो रहा है। लगभग पच्चीस -तीस औषधीय पौधों से बनी एैलोपैथिक दवाइयाॅ देष के किसी भी मेडिकल स्टोर में सीरप , टैबलेट , कैप्सूल व इन्जेक्षन के रुप में प्राप्त की जा सकती है। सदाबहार , सर्पगन्धा ,शतावार, घीकंवार , कौंच , कलिहारी , सनाय, गुग्गुल , वावची , तिलपुष्पी आदि ऐसे ही कुछ पौधे है, जिनका प्रयोग सम्पूर्ण संसार में हो रहा है। देष -विदेष की कई दवा निर्माता कम्पनियां इन पौधों से प्राप्त यौगिको , तेलों या इनकी संरचना पर आधिरित एनालाइसिस करके दवाइयां बनाने में जुटी है तथा जनसमान्य में भी आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से तैयार दवाइयों के सेवन का प्रचलन बढ़ रहा है। इस पुस्तक से पाठकों को काॅफी लाभ होगा।