सम्पूर्ण विश्व में विद्यमान प्रत्येक मानव, जाति एवं समूह में भिन्न-भिन्न विभेद एवं श्रेणियाँ पाई जाती हैं। भारत के संदर्भ में यह विभेद, भारतीय समाज की अभिन्न और अनूठी विशेषताओं के रूप में सदैव विद्यमान रहा है।
भारत के संविधान के अनुसार देश में निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक और विशेष रूप से आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़े तथा कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करने उनके आर्थिक-सामाजिक विकास को गति देने से लेकर उनके सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से भारत सरकार तथा राज्य सरकारों ने वैधानिक व्यवस्थापन एवं नियमन संरचनाएँ तैयार की हैं। इन व्यवस्थाओं का जनजातियों के आर्थिक-सामाजिक विकास से गहरा संबंध है। पुस्तक में सभी पहलुओं पर विस्तृत रूप से वर्णन किया है।