जिम्मेदारियां उम्र नहीं देखतीं, और मैंने यह बात 15 साल की उम्र में ही समझ ली थी। बहुत छोटी उम्र में लेथ मशीन, वेल्डिंग आदि का काम शुरू कर दिया था और जल्दी ही एक कुशल मैकेनिक बन गया था, ताकि अपने गरीब परिवार में रहते हुए भी अपनी सात बहनों को माता-पिता की मदद से एक अच्छे मुकाम तक पहुंचा सकूं। यही मेरा मेरे माता-पिता के प्रति कर्तव्य था। परमात्मा ने भी मेरा पूरा साथ दिया, और मैं इसके लिए हमेशा उनका शुक्रगुजार रहूंगा। माता-पिता का एहसानमंद हूं कि उनकी कृपा से मैं इस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभा पाया। उन्हीं की कृपा से आज मैं एक सफल व्यवसायी बन पाया हूं। बचपन से ही पढ़ाई में मेरी रुचि बनी रही, और काम के साथ-साथ पढ़ाई भी चलती रही। हायर सेकेंडरी के बाद मैंने इवनिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। बस, बरसों से अंदर बसे कुछ शब्दों ने कविता और कहानी को जन्म दिया।